बिहार में उत्तर प्रदेश की भोजपुरी चित्रकला की प्रदर्शनी



पटना— उत्तर प्रदेश की भोजपुरी चित्रकला अब बिहार की धरती पर अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराने जा रही है। यह अवसर मिलेगा फोकार्टोपीडिया फाउंडेशन, पटना द्वारा आयोजित “लोकपरंपरा- उत्सव” नामक प्रथम राष्ट्रीय लोकचित्र प्रदर्शनी में, जो 18 से 20 अप्रैल 2025 के बीच कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, पटना में आयोजित की जाएगी।


इस तीन दिवसीय प्रदर्शनी में देश के दस राज्यों—बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ से 35 लोककलाकारों की 60 से अधिक कलाकृतियाँ प्रदर्शित होंगी।

उत्तर प्रदेश से भोजपुरी चित्रकला की दो-दो कृतियाँ वरिष्ठ लोकचित्रकार वंदना श्रीवास्तव और कुमुद सिंह द्वारा प्रस्तुत की जाएगी।

प्रदर्शनी में भूपेंद्र अस्थाना, कुमुद सिंह और वंदना श्रीवास्तव विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे। साथ ही, फैकल्टी ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग, लखनऊ की डीन डॉ. वंदना सहगल को गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में आमंत्रित किया गया है।


वंदना श्रीवास्तव भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की वरिष्ठ अध्येता फेलोशिप प्राप्त कर चुकी हैं। वे दिल्ली सरकार की साहित्य कला परिषद की सदस्य भी रह चुकी हैं। उनका चित्रकर्म भोजपुरी लोकजीवन, समाज और परंपराओं का सजीव प्रतिबिंब है, जिसमें भोजपुरी समाज की गहराई, रंग, रूप और जीवन-दर्शन झलकते हैं। मूलतः राजस्थान-शिक्षित वंदना श्रीवास्तव मऊ ज़िले के रामपुर कांधी, देवलास गाँव की बहू हैं।


कुमुद सिंह वर्तमान में उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान, लखनऊ की सक्रिय सदस्य हैं। वे पूर्व में साकेत पी.जी. कॉलेज, अयोध्या में चित्रकला विभाग की अध्यक्ष रह चुकी हैं। उनकी कलाभिव्यक्ति में लोक और शास्त्र का सम्यक संगम देखने को मिलता है।

फोकार्टोपीडिया फाउंडेशन के निदेशक सुनील कुमार ने बताया कि यह आयोजन केवल प्रदर्शनी नहीं होगा, बल्कि लोककला के समकालीन संकटों पर संवाद और विमर्श का एक गंभीर मंच भी बनेगा। ‘ओसारा टॉक्स’ और ‘फोकार्टोपीडिया फोरम’ के अंतर्गत होने वाली कलावार्ताओं में देश भर के कलाकार अपने विचार साझा करेंगे।

भोजपुरी चित्रकला उत्तर प्रदेश और बिहार की साझी सांस्कृतिक धरोहर है, परंतु वर्तमान में यह लगभग लुप्तप्राय हो चुकी है। ऐसे आयोजनों के माध्यम से इसकी ओर पुनः सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना जागृत की जा सकती है।”

प्रदर्शनी में शामिल अन्य प्रमुख लोकचित्र परंपराओं में बिहार की गोदना, मंजूषा और मिथिला, मध्यप्रदेश की गोंड व भील, झारखंड की सोहराई, कोवर और उरांव, महाराष्ट्र की वर्ली, राजस्थान की फड़ व पिचवई, कर्नाटक की चितारा व सुरपुर रेखा चित्रकला प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त नेपाल और सिंगापुर से भी कुछ अंतरराष्ट्रीय लोककलाकारों की कलाकृतियाँ प्रदर्शित की जाएँगी।

फोकार्टोपीडिया, वर्ष 2021 से लोककलाओं के डिजिटल दस्तावेजीकरण के क्षेत्र में कार्यरत है और यह हिन्दी पट्टी में अपनी तरह की पहली निजी पहल मानी जाती है।


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