संस्कृति अगर कल्पना है तो सभ्यता यथार्थ है- अमरनाथ


गोरखपुर -राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा  आज भारतीय संस्कृति अभिरूचि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत सात दिवसीय राष्ट्रीय व्याख्यान श्रृंखला का छठवां दिवस सम्पन्न हुआ, जिसका शुभारंभ मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। 

व्याख्यान श्रृंखला में आज प्रथम सत्र में अपरान्ह 2.00 बजे से 3.00 बजे तक ‘‘मथुरा की बौद्ध कला‘‘ प्रोफेसर (डाॅ0) सुजाता गौतम, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी का व्याख्यान तथा दूसरे सत्र में अपरान्ह 3.00 बजे से 4.00 बजे तक ‘‘पुरातात्विक साक्ष्यों के परिपेक्ष्य में संस्कृति और सभ्यता‘‘ विषय पर डाॅ0 अनिल कुमार वाजपेयी, प्राचार्य, अमरनाथ गर्ल्स डिग्री कॉलेज, मथुरा, उ0प्र0 का व्याख्यान हुआ। 


कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर (डाॅ0) सुशील तिवारी, पूर्व आचार्य दर्शन विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर तथा वर्तमान विशेष कार्य अधिकारी, अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध केन्द्र, सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर ने की। 

कार्यक्रम का संचालन रीता श्रीवास्तव, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी कलाकार द्वारा की गयी।


मथुरा की बौद्ध कला‘‘ विषय पर बोलते हुए मुख्य विषय विशेषज्ञ-  प्रोफेसर (डाॅ0) सुजाता गौतम, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, बी0एच0यू0, वाराणसी ने कहा कि मथुरा तथागत बुद्ध के काल से ही महत्वपूर्ण स्थल के रूप में स्थापित हो चुका था। 

मथुरा 16 महाजनपदों में से एक सूरसेन जनपद की राजधानी थी। मथुरा अशोक के काल से लेकर गुप्त काल तक बौद्धों की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। आपने मथुरा कला में दर्शनीय बुद्ध तथा बुद्ध के दर्शन की विस्तृत व्याख्या की। आपने मथुरा कला के सांस्कृतिक चरणों के क्रमिक विकास तथा विस्तार को समग्रता के साथ प्रस्तुत किया गया। आपने मथुरा संग्रहालय में संग्रहीत बौद्ध पुरावशेषों को पी0पी0टी0 के माध्यम से सचित्र प्रदर्शित कर कार्यशाला में उपस्थित विद्वतजनों को प्रत्यक्ष रूप से बौद्ध विरासत से परिचित कराया।


दूसरे सत्र में ‘‘पुरातात्विक साक्ष्यों के परिपेक्ष्य में सभ्यता और संस्कृति‘‘ विषय पर बोलते हुए मथुरा से पधारे विद्वान वक्ता डॉ अनिल वाजपेई, प्राचार्य अमरनाथ गर्ल्स डिग्री कॉलेज ने कहा कि सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे के पूरक हैं। संस्कृति अगर कल्पना है तो सभ्यता यथार्थ है। सभ्यता संस्कृति की अनुगामी होती है। पुरातात्विक अवशेषों से हमको किसी भी काल की सभ्यता और संस्कृति को जानने में बहुत सहायता मिलती है।

उन्होंने अपने संग्रह की कुषाण कालीन मृदभांड, मूर्तियों, का पी. पी. टी. प्रदर्शन करते हुए बताया कि किस प्रकार मथुरा से प्राप्त प्राचीन मूर्तियों, सिक्कों और मिट्टी के बर्तनों से मथुरा के अतीत की सभ्यता संस्कृति ज्ञात होती है। उन्होंने अपने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन में विश्व के विभिन्न संग्रहालय में उपस्थित पुरातात्विक साक्ष्यों का तुलनात्मक विवरण और उनमें निहित सांस्कृतिक समानता भी श्रोताओं को बताई।


आज के व्याख्यान के मुख्य वक्ताओं को संग्रहालय की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया गया। 

18 फरवरी, 2025 दिन मंगलवार को प्रथम सत्र में ‘‘बौद्ध धम्म के विकास में सम्राट अशोक की भूमिका एवं योगदान‘‘ विषय पर भिक्खु चन्दिमा थेरो, संस्थापक अध्यक्ष, बुद्धा धम्मा लर्निंग सेन्टर, सारनाथ, वाराणसी द्वारा तथा प्रोफेसर (डाॅ0) राजवन्त राव, संकाय अध्यक्ष, कला संकाय, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविालय, गोरखपुर द्वारा ‘‘भारतीय संस्कृति‘‘ पर व्याख्यान दिया जायेगा।

व्याख्यान कार्यक्रम के समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ0 मंगलेश श्रीवास्तव, महापौर नगर निगम, गोरखपुर द्वारा पुरस्कार एवं प्रमाण-पत्र का वितरण भी किया जायेगा।



 

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