भारतीय संस्कृति अभिरूचि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आज आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यान श्रृंखला का दूसरा दिन सफलतापूर्वक सम्पन्न


राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा आज  भारतीय संस्कृति अभिरूचि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत सात दिवसीय राष्ट्रीय व्याख्यान श्रृंखला का दूसरा दिन सम्पन्न हुआ, जिसका विषय ‘‘जातक अट्ठकथाओं में प्रबन्ध शास्त्रीय तत्व‘‘ रहा, जिसके मुख्य वक्ता डाॅ0 जसबीर सिंह चावला रहें।

 कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। 

विशिष्ट अतिथि डाॅ0 मालविका रंजन, इतिहास विभाग, सामाजिक विज्ञान संकाय, बी0एच0यू0 वाराणसी, उ0प्र0 ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। 

मंच का संचालन रीता श्रीवास्तव, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन कलाकार ने किया। उक्त अवसर पर जातक अट्ठकथाओं पर आधारित लघु फिल्मों का प्रदर्शन भी किया गया।

उक्त अवसर पर डाॅ0 सुजाता गौतम, डाॅ0 माण्डवी राठौर एवं डाॅ0 रेखारानी शर्मा आदि की उपस्थिति रही। 


उक्त अवसर पर मुख्य वक्ता डाॅ0 जसबीर सिंह चावला ने आज के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जातक कथाएं भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं नहीं हैं। सच कहा जाए तो जातक दुनिया का सबसे पुराना प्रबंध शास्त्र का ग्रंथ है जो पाली भाषा में लिखा गया। ईत्सिंग नामक चीनी यात्री ने लिखा भी है कि प्रबंधन की शिक्षा देने के लिए यह बौद्ध विहारों में प्रत्येक विभाग में पढ़ाया जाता था।

 गौतम बुद्ध विहार की तथा समाज में लोगों की समस्याओं का समाधान उदाहरण कथाएं देकर सुनाया करते थे। यह उनका मनोवैज्ञानिक ढंग था। टोना टोटका या बीज मंत्र इत्यादि देने की बजाय वह अतीत कथा सुनाते थे जिसमें बोधिसत्व ने वैसी ही समस्या को कैसे निपटाया था इसकी जानकारी होती थी। 

बुद्ध द्वारा दिए गए संदेश गाथाओं  में मिलते थे जिन्हें भिक्षु, स्थविर ,धर्म कथिक याद कर लेते थे । मौखिक परंपरा के अनुसार सूत्रों की तरह भी इनका इस्तेमाल होता रहा । बुद्ध के बाद जब उनके वचनों का पाली भाषा में लेखन कार्य हुआ तो तिपिटक के खुद्दक निकाय में इनका संकलन दसवें ग्रंथ में हुआ। कालांतर में बुद्ध वाणी की व्याख्या के लिए अर्थ कथाएं बनीं। बुद्ध घोष ने  प्रचलित कथाओं का उपयोग व्याख्या करने के लिए अट्ठकथाओं के रूप में किया। सब में बोधिसत्व नामक चरित्र उभर कर आता है। अतः, यह धारणा बनी थी कि बोधिसत्व बुद्ध का ही रूप है। बुद्ध पुनर्जन्म को नहीं मानते थे परंतु पुनर्भव तो मानते थे। तब यह धारणा स्वाभाविक रूप से जुड़ने लगी कि बोधिसत्व बुद्ध के पूर्व जन्म थे। जातक को भी इसी दृष्टि से देखा जाने लगा। सैंकड़ो कहानियों में बोधिसत्व जानवर ,वृक्ष, घास ,बादल ,आकाश समुद्र इत्यादि रूपों में है। 

जातक के अलावा बुद्ध घोष ने अन्य ग्रंथों की अट्ठकथाएं भी लिखीं परंतु, जातक  अर्थकथाओं की शैली भिन्न है।उनको पूर्व जन्म की कहानी मानना भगवान बुद्ध का अपमान है और इन कहानियों का भी अवमूल्यन है। जातक के 6 खंडों में उपलब्ध 547 अट्ठकथाओं पर इतना दावे के साथ कहा जा सकता है कि बुद्धघोष ने इन्हें प्रबंधन के काम में लाई जाने वाली उदाहरण कथाओं के रूप में लिखा था। हर जातक कथा के पांच भाग होते हैं । इन सब को मिलाकर पढ़ने से ही प्रबंध शास्त्र के तत्वों का पता लगता है और रहस्य खुलते हैं।  प्रबंध शास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों की कहानियां इनमें मिलती हैं । गाथा की संख्या के हिसाब से वर्गीकरण कर  खंड बनाए गए थे इसलिए सारे विषय  वर्गीकृत नहीं  हैं। इनका पुनर्लेखन किया गया है ।

 भ्रष्टाचार प्रबंधन, दांपत्य कलह प्रबंधन, पर्सनल मैनेजमेंट, स्किल डेवलपमेंट, कम्युनिकेशन मैनेजमेंट इत्यादि अर्वाचीन विषयों के अनुरूप उनके विभाग किया जा सकते हैं । 

कुछ कथाओं का फिल्म में रूपांतरण भी किया गया है। स्त्री पुरुष के संबंधों पर कुछ फिल्मों का प्रदर्शन भी किया गया।


व्याख्यान की अध्यक्षता डाॅ0 मालविका रंजन ने किया। मुख्य वक्ता को संग्रहालय की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया गया।


14 फरवरी, 2025 दिन शुक्रवार को विषय ‘‘बुद्धकीय प्रबन्धन उर्फ सम्यक प्रबन्धन: परिचय एवं प्रयोग‘‘  विषय पर डाॅ0 जसबीर सिंह चावला का व्याख्यान तथा  ‘‘बौद्ध धर्म और पर्यावरण‘‘ विषय पर डाॅ0 मालविका रंजन जी व्याख्यान होगा। कल भी ‘‘जातक कथाओं पर लघु फिल्मों का प्रदर्शन‘‘ होगा। 


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