नव नालंदा महाविहार के हिन्दी विभाग व 'चरथ भिक्खवे' साहित्यिक-सांस्कृतिक यात्रा का संयुक्त सांस्कृतिक संवाद आयोजित किया गया
बुद्ध के विचारों पर आधारित साहित्यिक सांस्कृतिक 'चरथ भिक्खवे यात्रा' आज 16 अक्टूबर को नालंदा में पहुंची। इस यात्रा के नालंदा-संयोजक प्रोफेसर रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव
'परिचय दास' ने इस यात्रा में शामिल सभी अतिथियों का नव नालंदा महाविहार के प्रांगण में स्वागत किया।
साथ में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हरेकृष्ण तिवारी और हिंदी के सहायक आचार्य डा. अनुराग शर्मा ने भी स्वागत किया।
इस अवसर पर 'सांस्कृतिक संवाद' कार्यक्रम का आयोजन नव नालंदा महाविहार के हिन्दी विभाग व 'चरथ भिक्खवे' द्वारा संयुक्त रूप से सप्तपर्णी सभागार में आयोजित किया गया।
सर्वप्रथम बुद्ध की प्रतिमा पर पुष्प-अर्पण किया गया। तत्पश्चात महाविहार के भिक्खुओं द्वारा मंगलाचरण किया गया। इसके बाद अतिथियों को शाल और हिन्दी रचनाकार नागार्जुन रचित 'बलचनमा' उपन्यास देकर सम्मानित किया गया।
मंच पर प्रोफेसर सदानंद शाही, प्रोफेसर मृदुला सिन्हा, रणेंद्र, रमाशंकर सिंह, प्रो. हरेकृष्ण तिवारी, प्रोफेसर रवींद्रनाथ श्रीवास्तव परिचय दास', डॉ. अनुराग शर्मा व चेक गणराज्य के थॉमस पीटर गुट्टमन मौजूद रहे।
कार्यक्रम का स्वागत- वक्तव्य प्रोफेसर रवींद्र नाथ श्रीवास्तव' परिचय दास' द्वारा दिया गया। स्वागत-वक्तव्य में उन्होंने कहा कि जब हम शब्द से मौन और मौन से ध्यान की प्रक्रिया में गुजरते हैं तो वहां बुद्ध को पाते हैं। मौन में अंतरंगता व स्वयं को पाने की प्रक्रिया ही रचना- प्रक्रिया का उत्स है।
उन्होंने कहा कि करुणा के बगैर शांति की दुनिया की कल्पना नहीं की जा सकती। सच के अगर बहुलार्थ नहीं हैं तो वह सच नहीं है। सच का एकीकरण तानाशाही है। उन्होंने बुद्ध-वचन-- 'बहुजन हिताय , बहुजन सुखाय' को जीवन में उतारने को कहा क्योंकि वह अन्तिम आदमी का पक्ष है।
रमाशंकर सिंह ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा कि हम लोग आजकल पर्यटक हो गए हैं, यात्री नहीं रहे।यह 'चरथ भिक्खवे' यात्रा अपने अंतर्मन में छिपे इसी यात्री-भाव की खोज है।
प्रोफ़ेसर सदानंद शाही ने कहा कि बुद्ध ने कहा है कि कवियों की जो बात है, वह कविता के माध्यम से लोगों के मन तक उतरती है। उन्होंने नालंदा को पुण्य-भूमि बताया , इसके साथ ही इसे बुद्ध और सरहपा की धरती बताया।
उन्होंने कुंवर नारायण की कविता 'सरहपा' का पाठ भी किया। कहा कि गर्व का विषय है कि हिन्दी के पहले कवि सरहपा की धरती पर यश कार्यक्रम हो रहा है।
आपने 'साखी' पत्रिका का एक अंक नवनालंदा महाविहार को भेंट भी किया। रणेंद्र ने कहा कि मानव द्वारा अपने सेल्फ डिस्ट्रक्शन का पहला चरण युद्ध है। इससे बचने के लिए बुद्ध द्वारा बताए गए हिंसा मार्ग को अपनाना बहुत ज़रूरी है। उन्होंने लोगों को प्रकृति के साथ जुड़े रहने की भी प्रेरणा दी। वास्तविक इकोलोजी प्रकृति से तादात्म्य है।
चेक गणराज्य के बहुभाषाविद थॉमस पीटर गुट्टमन ने कहा कि बौद्ध धर्म एक प्रकार की चिकित्सा है, इसके द्वारा हमारे विचारों की चिकित्सा अनवरत होती रहती है।
मृदुला सिन्हा ने कहा कि भारतीय कला में बौद्ध कला का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। उन्होंने बताया कि जब हम किसी शिल्प को देखते हैं तथा उनके पीछे के विचारों को समझते हैं तो उन आकृतियों के नए आयाम हमारे सामने खुलते हैं। इस यात्रा के माध्यम से हम इन्हीं विचारों को जानने का प्रयास करेंगे। कार्यक्रम का संचालन प्रो. हरेकृष्ण तिवारी ने किया। उन्होंने इस यात्रा को सकारात्मक व विश्व के लिए मंगलकारी बताया।
कार्यक्रम का समापन- उद् बोधन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. अनुराग शर्मा द्वारा दिया गया। उन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी को हार्दिक बधाई दी।
इस कार्यक्रम में सम्मानित आगत अतिथि व नव नालंदा महाविहार के आचार्य, शोध छात्र, परास्नातक के छात्र , अन्य स्टाफ व बुद्ध प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम के बाद सभी अतिथि नालंदा धरोहर देखने गये। यह नालंदा यात्रा अत्यंत विचार-पूर्ण, बुद्ध- विचारों से ओतप्रोत व विश्व-शान्ति की कामना का हेतु मंगलमयी सिद्ध हुई।