वाल्मीकि जयंती पर रामायण पाठ का आयोजन किया गया
झांसी -आज राजकीय संग्रहालय, संस्कृति विभाग, उ0 प्र0 द्वारा वाल्मिकी जयंती के अवसर पर श्री सिद्वेश्वर मन्दिर ग्वालियर रोड झांसी में रामायण पाठ एवं भजन का आयोजन किया गया।
आचार्य हरिओम पाठक जी द्वारा भगवान श्रीराम एवं महर्षि वाल्मिकी जी की पूजा करने के उपरान्त रामायण पाठ प्रारम्भ किया गया।
रामायण पाठ से पूर्व रामायण एवं महर्षि वाल्मििकी जी पर प्रकाश डालते हुए आचार्य हरिओम पाठक ने कहा कि वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई।
रामायण एक महाकाव्य है जो कि राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है। आदिकवि शब्द आदि और कवि के मेल से बना है। आदि का अर्थ होता है प्रथम और कवि का अर्थ होता है काव्य का रचयिता। वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये।
रामायण में भगवान वाल्मीकि ने 24000 श्लोकों में श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी। ऐसा वर्णन है कि- एक बार वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के एक जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलिये ने प्रेम-मग्न क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया।
इस पर मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुनकर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम॥
(अर्थः हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।) उसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण (जिसे वाल्मीकि रामायण के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और आदिकवि वाल्मीकि के नाम से अमर हो गये।
अपने महाकाव्य रामायण में उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे।
राम राम सब जगत बखाने । आदि राम कोइ बिरला जाने ।।
उक्त अवसर पर डा0 मनोज कंमार गौतम उने कहा कि अपने वनवास काल के दौरान भगवानश्रीराम वाल्मीकि के आश्रम में भी गये थे। भगवान वाल्मीकि को श्रीराम के जीवन में घटित प्रत्येक घटना का पूर्ण ज्ञान था।
सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है इसलिए भगवान वाल्मीकि को सृष्टिकर्ता भी कहते है, रामचरित मानस के अनुसार जब श्रीराम वाल्मीकि आश्रम आए थे तो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए वे जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विस्व बदर जिमि तुमरे हाथा। अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हैं। ये संसार आपके हाथ में एक बैर के समान प्रतीत होता है।
इसके उपरान्त रामायण पाठ का शुभारम्भ हुआ। उक्त अवसर पर जितेन्द्र तिवारी, आचार्य राजीव पाठक, डा0 उमा पाराशर, रिंकी श्रीवास्तव, सुरेश झा, अजय वर्मा, महेन्द्र, सियाराम, बृजगोपाल, जगदेवा एवं श्री सिद्वेश्वर मन्दिर के पुरोहित की शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्य भी उपस्थित रहे।