अपनी बात' पुस्तक पर विविध विचारों का संकुल
अपनी बात' पुस्तक रविन्द्र लाल श्रीवास्तव की संस्मरणात्मक पुस्तक है। यह अभी तक दो खंडों में है। पहले खण्ड में उन्होंने अपने जीवन के विविध पहलुओं पर संस्मरण लिखा है। आज़मगढ़-मऊ जिले के बहुत सारे प्रसंग इसमें हैं तो दिल्ली के भी। परिवार के तो हैं ही।
पुस्तक के दूसरे खण्ड में उनकी पत्नी ऊषा श्रीवास्तव के आलेख सम्मिलित हैं। ऊषा जी ने समाज, राजनीति, स्त्री, ब्युरोक्रेसी , पानी, सफाई, दिल्ली की स्थिति आदि अनेक प्रश्न अपने आलेखों में उठाये हैं। इस पुस्तक पर अनेक महत्त्वपूर्ण लोगों की टिप्पणियाँ आयी हैं।
पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी, गोआ के पूर्व मुख्य सचिव, भारत सरकार के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी , मैथिली- भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार के पूर्व उपाध्यक्ष तथा स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलाधिपति डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने लिखा है- '
ऊषा ने कितनी सरलता से अत्यंत उपयोगी बातें बताई हैं, अपने छोटे छोटे आलेखों द्वारा , जिनका उद्देश्य पाठकों को दैनिक जीवन में क्रियान्वित करने के लिये प्रेरित करना है।
साथ ही गलत बातों के लिए कटाक्ष करने से भी वे नहीं चूकी हैं। मुझे लगता है कि उनके प्रेरणा स्रोत आप ही रहे होंगे। जहाँ तक मैंने उन्हें जाना है, राजनीति में भी उनकी दिलचस्पी थी।
संभवतः इस विषय पर भी उनके कुछ लेख आप को मिल जाएं। उसे भी हमारे सामने अवश्य लाएं। इस शृंखला की तीसरी कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।'
पुस्तक पर प्रख्यात लेखक, मैथिली भोजपुरी अकादमी , दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव तथा नव नालंदा सम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव 'परिचय दास' ने बहुत आत्मीयता से लिखा है कि ये आलेख समय की नब्ज को अच्छी तरह से पकड़ते हैं।
पीपीगंज डिग्री कॉलेज, गोरखपुर के पूर्व प्राचार्य डॉ. स्वयं प्रकाश श्रीवास्तव ने लिखा है- 'अपनी बात' आत्मकथात्मक विश्लेषण के रुप में बहुत अच्छी और रोचक कृति है। इसमें रविन्द्र लाल श्रीवास्तब ने अपनी वंशावली से लेकर बचपन, शिक्षाकाल, सेवाकाल और प्रशासनिक कार्यवृत्त का इतने रोचक ढंग से वर्णन किया है कि पुस्तक पढ़ना प्रारंभ करने पर पूरा पढ़कर ही समाप्त करने का मन करता है। सचमुच आपका लेखन बहुत
प्रभावित करने वाला है। इस अनूठी प्रतिभा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।'
कादम्बिनी, साहित्य अमृत, गौरवशाली भारत आदि पत्रिकाओं की लेखिका माला श्रीवास्तव ने लिखा है -
' रविंद्र लाल श्रीवास्तव की पुस्तक 'अपनी बात' यूँ तो व्यक्तिगत संस्मरणों का संकलन है किंतु शैली अत्यंत रोचक, भाषा सहज व प्रवाहपूर्ण है, इस कारण सभी पाठकों को अपनी अपनी स्मृतियों की वीथि में विचरण करने की सहज ही प्रेरणा देती है। लेखक को न केवल घटनाएं याद हैं वरन, तिथियाँ, बाल सहपाठियों के नाम, शिक्षकों के नाम, सभी कंठस्थ हैं जो आश्चर्य के साथ आनंदित करता है,
हम लोगों को यह पुस्तक विशेष प्रिय है क्योंकि यह हम लोगों की बहुत प्रिय स्नेहमयी दीदी व आदरणीय जीजा जी के जीवन से जुड़ी है, हमलोग भी इन संस्मरणों के साथ अपने को जुड़ा पाते हैं।'
लेखिका की पुत्री तथा एक बैंक में उप महाप्रबंधक निधि चंद्रा ने लिखा है-
'अपनी बात के दूसरे भाग में पिता जी ने, मम्मी द्वारा लिखे लेखों का संकलन किया है। मम्मी के विचारों की अभिव्यक्ति उनके सशक्त चरित्र को बहुत खूबी से दर्शाता है। इन लेखों को प्रकाशित करने का आपका विचार ,आप दोनों के परस्पर प्रेम और आदर को व्यक्त करता है। आपने बड़े ही प्यार से फ़ोटो से हम सबकी बचपन की यादों को ताज़ा किया है। आप हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है आप से हम लोग सबल है।'