संकल्प की पूर्णता का विधान पराशक्ति करती है-
नोएडा- फाल्गुन मास के पावन माह में श्री शिव महापुराण कथा के समापन के अवसर पर कथा सुनाते हुए सद्गुरुनाथ ने कहा कि आज का दिन व समय अलौकिक है। संकल्प की पूर्णता का विधान पराशक्ति करती है, इसलिये जो चाहो मिलेगा ; बस, अपने को थकने मत देना।
राग, द्वेष, वैमनस्य, अपमान , हिंसा आदि को छोड़कर मनुष्य बन सकते हैं। शरीर के स्वस्थ रहते मनुष्य को मोक्ष और ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए। मनुष्य माया के जाल में फँस जाता है तथा लालच के वशीभूत होकर ज्ञान की प्राप्ति नहीं करता। इस कारण मोक्ष की प्राप्ति सम्भव नहीं हो पाती। वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति और स्थान आदि से मोह या लगाव दु:खों व असफलताओं का हेतु बन जाता है। इसलिए मोह को छोड़ आनंद और सफलता की ओर बढ़ें। भक्ति, ध्यान और साधना ज़रूरी है।
मनुष्य को धन संग्रह करने से पहले इसका ध्यान रखना चाहिए कि धन अर्जित करने के लिए हमेशा सही मार्ग अपनाएं और मेहनत से धन कमाएं। अर्जित धन का पहला भाग, उपभोग के लिए, दूसरा भाग , धर्म-कर्म के लिए तथा तीसरा भाग , भविष्य के लिए संचित करें।
महर्षि नगर, नोयडा के रामलीला मैदान में पिछले 29 फरवरी से 8 मार्च तक आध्यात्मिक चिंतक सद्गुरुनाथ जी के सान्निध्य में यह आयोजन भक्तिमय ढंग से संपन्न हुआ। कथा- स्थल शिवमय दृष्टिगोचर हुआ। श्री शिव महापुराण कथा का आयोजन करवाने के लिए सद्गुरुनाथ जी ने आयोजकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि आप लोगों के अथक प्रयास से ही इतने भव्य तरीके से कथा संपन्न हो सका। भक्तों ने भी श्री शिव महापुराण कथा के लिए आयोजन समिति के पदाधिकारियों और सदस्यों को बहुत-बहुत साधुवाद देते हुए कहा कि सचमुच ऐसा लग रहा है कि हम लोगों के सामने श्री शिव जी विद्यमान हैं।
श्री शिव महापुराण कथा के पावन अवसर पर अजय प्रकाश श्रीवास्तव, अध्यक्ष, महर्षि महेश योगी संस्थान और कुलाधिपति, महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ इन्फार्मेशन टेक्नालोजी, निशि श्रीवास्तव, राहुल भारद्वाज, उपाध्यक्ष, महर्षि महेश योगी संस्थान और शिव महापुराण कथा कार्यक्रम के संयोजक रामेन्द्र सचान , गिरीश अग्निहोत्री, भारत सरकार व दिल्ली सरकार के पूर्व अधिकारी तथा नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय के प्रोफेसर , सम्पादक व लेखक आचार्य रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव 'परिचय दास' , शिव पुराणमहा कथा के मुख्य यजमान एस. पी. गर्ग , श्रेष्ठ वशिष्ठ सहित सहस्र श्रोता उपस्थित थे।
महर्षि नगर , नोएडा में आयोजित श्री शिव महापुराण कथा सुनाते हु सद्गुरुनाथ ने कहा कि कलिकाल में लोग समस्याओं से ग्रसित होते जा रहे हैं, जिससे भगवान शिव की भक्ति के द्वारा ही मुक्ति मिल सकती है। इस संसार के शिव ही तारणहार हैं।
लोग पूर्ण निष्ठा से भगवान का अभिषेक एवं पूजा-अर्चना करें और अनेक समस्यायों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें। जब जीवन में विपत्ति आती है तो सारी दुनिया साथ छोड़ देती है लेकिन भोलेनाथ अपने भक्तों को कभी अकेला नहीं छोड़ते। मृत्यु शैया पर भी जो व्यक्ति पड़ा हो, उसकी सलामती के लिए अगर महामृत्युंजय का जाप सही विधि से किया जाए तो वह भी ठीक हो सकता है। ऐसे चामत्कारिक देव हैं- महादेव। बस जरूरत है इनके प्रति पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास की।
श्री शिव महापुराण कथाक्रम को आगे बढ़ाते हुए सद्गुरूनाथ जी महाराज ने कहा कि पुराणों में रुद्राक्ष को देवों के देव भगवान शिव का स्वरूप ही माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रु से हुई है। रुद्राक्ष पहनने से इंसान की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। जो इसे धारण कर भोलेनाथ की पूजा करता है उसे जीवन के अनंत सुखों की प्राप्ति होती है।
सद्गुरुनाथ ने बेलपत्र के गुणों को बताते हुए कहा कि शिव भगवान को दूध और बेलपत्र दोनों बहुत पसंद है। बेलपत्र को ऊपर की जेब में रखने से दिल में रक्तप्रवाह ठीक बना रहता है। आगे उन्होंने कहा कि श्री शिव महापुराण में चौबीस हजार श्लोक हैं उनमें से एक श्लोक ही नहीं बल्कि एक शब्द मात्र को भी अपने जीवन मे धारण करने से इस मानव शरीर की शुद्धि होती है। उन्होंने कहा हमें मनुष्य का शरीर तो मिल गया लेकिन हमने इसके महत्त्व को नहीं समझा तो सब बेकार है। मानव शरीर का महत्व भगवान की भक्ति में है।
कथा के दौरान सद्गुरुनाथ जी ने कहा कि जीवन में जितने दु:ख आते हैं वह कर्मो से आते हैं। भारत देवभूमि व कर्मभूमि है। यहां पर मनुष्य जैसा कर्म करेगा, उसको उसी के अनुसार फल की प्राप्ति होगी। शुभ सोच का फल पुण्य व गलत कृत्य का फल पाप के रूप में मिलता है। संत वही है जो बुराइयों को सहने के बावजूद भी मानव कल्याण का हित सोचता है। उन्होंने कहा कि राजा दक्ष ने पुत्री के प्रति स्नेह के बजाय द्वेष किया। इसलिए यज्ञ सत्कर्म करने पर भी उन्हें दुख का सामना करना पड़ा। बेटी का अपमान करने पर देवता भी सहायता नहीं करते।
जप करो, तप करो, तीर्थ करो हज़ार। मात-पिता की सेवा बिनु, सब कुछ है बेकार।। यानि कोई चाहे भगवान की कितनी ही भक्ति कर ले, तपस्या करे, तीर्थ यात्रा करे, लेकिन यदि घर मे माता-पिता दुखी हैं, उनका आदर सम्मान नही हो रहा है तो ये सब निष्फल ही रहता है। ऐसी पूजा सेवा को भगवान भी स्वीकार नही करते।
सद्गुरुनाथ जी ने बताया कि बचपन से ही बच्चे में अच्छे गुण विकसित करने चाहिए। बच्चा जितना संस्कारी होगा उसके विचार उतने ही सुंदर और मनमोहक होंगे। जिंदगी में वो जरूर कुछ ऐसा करेगा कि पूरे परिवार का नाम रोशन होगा। हमेशा परिवार में पूजा-अर्चना होनी चाहिए। अगर भगवान ने आपको कुछ दान देने वाला बनाया है तो भगवान का शुक्रिया अदा कीजिए। अच्छे कामों में दान-दक्षिणा दीजिए। जिससे आपके पितर भी खुश होंगे और आपके घर धनवर्षा होगी। सदा परिवार में खुशियां व्याप्त होंगी।