सेवा का कोई मूल्य नहीं होता- रजनी कांत


कुशीनगर -जब सभी धर्म  के लोगो की जन्म और मृत्यु की गति/संस्कार पद्धति संसार में लगभग एक जैसी है तब दैनिक जीवन में सामाजिक लोकाचार हेतु कानून अलग अलग क्यों हो?जब जीवन के मौलिक अधिकार के कानून एक समान है तो सामाजिक व्यवहार को लेकर अलग अलग धर्मो के लिए कानून अलग अलग क्यों हो?


उपरोक्त बातें राष्ट्रीय सेवा योजना के विशेष शिविर के तीसरे दिन पूर्व विधायक रजनीकांत मणि त्रिपाठी ने समान नागरिक संहिता और मानवाधिकार विषय पर बोलते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कही। 

उन्होंने कहा कि सेवा का कोई मूल्य नहीं होता।यह जीवन जीने की पद्धति है। सेवा भाव से परिपूर्ण छात्र ही स्वयंसेवक हो सकता है।जब आपको देखकर दूसरे लोग कहने लगे कि यह एन एस एस के स्वयंसेवक हैं तब समझना की आपका सेवा कार्य पूर्णता की तरफ अग्रसर है और आप सच्चे अर्थों में स्वयंसेवक बन गए हैं।


मुख्य अतिथि रिटायर्ड न्यायमूर्ति संतोष कुमार श्रीवास्तव ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि एन एस एस के नामकरण में ही राष्ट्र सेवा की योजना जुड़ी हुई है।आप सभी स्वयसेवक इस अर्थ में विशिष्ट हैं कि आप लोग राष्ट्र की सेवा हेतु नियोजित एवम् संकल्पित छात्र हैं। 

उन्होने कहा कि मानवाधिकार व्यक्ति का मूलभूत अधिकार हैं।यह व्यक्ति के जन्म लेते ही भारतीय संविधान द्वारा स्वयमेव प्राप्त हो जाते हैं।हमारे संविधान में मानवाधिकार से संबंधित लगभग 30 कानून है।भारत विविधताओं वाला राष्ट्र है लेकिन राष्ट्र की एकता,अखंडता, विकास और समानता के लिए समान नागरिक आचार संहिता का लागू होना जरूरी है। यू सी सी लागू करते समय ध्यान रखने की जरूरत है कि इससे दुसरे धर्म की स्वतंत्रता और विशिष्ट पहचान में सकारात्मक सोच के साथ कम से कम बदलाव करना पड़े। 


विशिष्ट अतिथि डॉ शम्भू दयाल कुशवाहा ने कहा कि मानवाधिकार का मुद्दा मानव की गरिमा से जुड़ा विषय है।यह मनुष्य के मूलभूत अधिकारों को परिभाषित करता है।मानवाधिकार का विचार कहता है कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं।समान नागरिक संहिता भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में एक लागू करना अत्यंत दुरूह कार्य है।एक ही देश में सभी नागरिकों के लिए समान कानून हो यह अत्यंत उत्तम विचार है।हमारे देश में अलग अलग धर्म के लोगो के पर्सनल लॉ बने हुए है जो राष्ट्र की एकता और व्यक्ति की गरिमा की दृष्टि से उचित नहीं है।सुप्रीम कोर्ट ने भी महसूस किया कि देश के समस्त नागरिकों हेतु एक समान कानून होने से न्याय की गरिमा,समानता और राष्ट्र की एकता मजबूत होती है।

इस अवसर पर अंशिका त्रिपाठी,आस्था अग्रवाल और रूबीना खातून ने अतिथियों के समक्ष मनमोहक सांस्कृतिक प्रतुतिया दी।अतिथियों का स्वागत और विषय स्थापना कार्यक्रम अधिकारी डॉ निगम मौर्य ने किया।

जबकि आभार ज्ञापन डॉ पारस नाथ ने किया।बौद्धिक सत्र में मंच संचालन स्वयसेवक जया तिवारी और आदित्य गोंड ने किया।

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