गर्मी की गहरी जुताई से फसलोत्पादन में मिलेगा लाभ
देवरिया-जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया है कि आई०पी०एम० (इण्टीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेन्ट) एक ऐसी विधा है जिसमें भौतिक, यांत्रिक, जैविक विधियों का प्रयोग कर एवं रासायनिक आदि तत्वों के कम से कम प्रयोग द्वारा उत्पादन लागत कम कर अधिक लाभ प्राप्त किया जाता है, साथ ही सस्टेनेबल कृषि को बढ़ावा दिया जाता है। इसमें खेत की गहरी जुताई एक प्रमुख शस्य क्रिया है।
रबी फसलों की कटाई के उपरान्त खेत खाली हो जाते है तथा खरीफ फसल बुवाई की तैयारी शुरू हो जाती है। गर्मी में खेतो की गहरी जुताई करना बेहद फायदेमंद है। तेज धूप में जुताई के बाद पलटी मिट्टी से खरपतवार अवशेष हानिकारक कीड़े, अण्डे, लारवा आदि नष्ट हो जाते है, खरपतवार / फसल अवशेष सड़कर खाद बन जाते है जिससे अगली खरीफ फसल लाभान्वित होती है एवं लागत में भी कमी आती है। वर्षा जल मृदा में गहराई तक पहुंचता है व नाइट्रोजन आदि तत्वों की वृद्धि होती है।
खरीफ फसल की बुवाई से पूर्व ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई बहुत जरूरी है। गहरी जुताई से नीचे की मिट्टी ऊपर आ जाती है, भुरभुरी हो जाती है। इससे बारिश का पानी मिट्टी की गहराई तक पहुंचता है एवं पानी की कमी पूरा करता है। खेत में नमी लम्बे समय तक बनी रहती है। गहरी जुताई से मिट्टी के अंदर छिपे हानिकारक कीड़े- मकोड़े उनके अण्डे, लारवा, प्यूपा आदि ऊपर आकर धूप से मर जाते है। खरपतवार के बीज, आदि भी ऊपर आकर सूर्य की तीव्र किरणों की गर्मी से नष्ट हो जाते है। मिट्टी के अन्दर के रोगकारक जीवाणु कवक, निमेटोड, सूक्ष्म जीव भी मर जाते है।
फसल अवशेष खरपतवार पानी के सम्पर्क में आकर व थोडी यूरिया से सड़ कर खाद में बदल जाते है इससे किसानों को कम खाद का प्रयोग करना पड़ता है तथा मृदा स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। मिट्टी में वायु संचार बढ़ जाता है जिससे उपलब्ध आक्सीजन में खरपतवारनाशी / कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष तथा पूर्व फसलों की जड़ो द्वारा मुक्त हानिकारक रसायनों का अपघन हो जाता है।
वायुसंचार बढ़ने से फसलों की जड़ों का विकास अच्छा होता है। इस प्रकार लाभप्रद खेती के लिए खेतों की गहरी जुताई बहुत आवश्यक है।