आलू की फसल में झुलसा रोग से रहे सावधान
तापमान गिरने और लगातार मौसम में बदलाव से इस समय आलू की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनी रहती हैं, अगर समय रहते इनका प्रबंधन न किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इस बारे में आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधौगिक विश्व विद्यालय कुमारगंज अयोध्या के सेवानृवित वरिष्ठ वैज्ञानिक ए्वं अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि मौसम की अनुकूलता तथा बदली होने पर आलू की फसल में फंफूद का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है,जो झुलसा रोग का प्रमुख कारण होता है।
झुलसा रोग दो प्रकार के होते हैं, अगेती झुलसा और पछेती झुलसा। अगेती झुलसा दिसंबर महीने की शुरुआत में लगता है, इस रोग में पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, सर्बप्रथम नीचे की पत्तियों पर संक्रमण होता है जहाँ से रोग ऊपर की ओर बढ़ता है। जिनमें बाद में चक्रदार रेखाएं दिखाई देती है। उग्र अवस्था मे धब्बे आपस में मिलकर पत्ती को झुलसा देते है। इसके प्रभाव से आलू छोटे व कम बनते हैं।
जबकि पछेती झुलसा दिसंबर के अंत से जनवरी के शुरूआत में लगने की संम्भावना रहती है। जो आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। इस बीमारी में पत्तियाँ किनारे व शिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है जिसके कारण पूरा पौधा झुलस जाता है। पौधो के ऊपर काले-काले चकत्ते दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़ जाते हैं। जिससे कंद भी प्रभावित होता है। बदली के मौसम एवं वातावरण में नमी होने पर यह रोग उग्र रूप धारण कर लेता है तथा चार से छह दिन में ही पूरी फसल बिल्कुल नष्ट हो जाती है। दोनों प्रकार की झुलसा बीमारी के प्रबंधन के लिये मौसम के साथ - साथ फसल की निगरानी करते रहना चाहिये। दोनों झुलसा बीमारियो के रोकथाम के लिए प्रोपिनेब 70 डब्ल्यू. पी. या क्लोरोथैलोनिल 75 डब्ल्यू. पी. फफूंदनाशक 400से 500 ग्राम को 400 लीटर पानी मे घोल कर प्रति एकड़ के हिसाब छिड़काव करें।जैसे ही बादल आए तुरंत दवाओं का छिड़काव करना चाहिए। बीमारी की तीब्रता को देखते हुए फफूंद नाशक का 10 दिन के अन्तराल पर पुनः छिडकाव करें।
किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि एक ही फफूँदीनाशक का छिड़काव बार -बार न करें। छिड़काव करते समय नाजिल फसल की नीचे की तरफ से ऊपर की तरफ करके भी छिड़काव करें जिससे पौधे पर फफूँदनाशक अच्छी तरह पड़ जाय।