फसल चयन को प्रभावित करने वाले कारक
अक्सर आसपास के किसानों की देखादेखी सभी किसान अपनी भी फसल की तैयारियाँ करना शुरू करते हैं। अमूमन प्रत्येक स्थान का फसल चयन- नजदीक के बाजार, मिट्टी के प्रकार, खेत की ढलान/ऊँचाई, सिंचाई जल की उपलब्धता, स्थानीय उपभोक्ताओं की पसंद और मुख्यतः जलवायु पर निर्भर करता है।
बात करें जलवायु की तो भारत मे शीतोष्ण (जम्मू कश्मीर, हिमाचलप्रदेश जैसे ठंडे प्रदेश), उपोष्ण (हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे उत्तर भारतीय राज्य) एवं उष्ण कटिबंधीय (केरल, कर्नाटक जैसे समुद्र तटीय गर्म क्षेत्र) मुख्यतः 3 तरह की जलवायु में बंटे क्षेत्र में कृषि उस जलवायु के मुफीद फसलों द्वारा करी जाती है।
इसका अर्थ है कि यह जरूरी नही कि किसी स्थान विशेष पर बढिया उत्पादन दे रही कोई भी पौध किस्म, उस जलवायु आए अलग जलवायु वाले स्थान पर भी वैसा ही या उसके आसपास भी प्रभाव दे सके, इसकी सम्भावना हाँ और ना दोनों की ही बनी रहती है |
उदाहरण के तौर पर भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान, बैंगलोर से कुछ वर्ष पहले निकली अर्का रक्षक टमाटर की किस्म जिसे कि 19 किलो उत्पादन देने वाली और लीफ कर्ल वायरस, उकठा, जीवाणु झुलसा इन 3 रोगों से प्रतिरोधी बताया गया था, को हाल के ही कुछ वर्षों में भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली के फार्म पर करे गए शोध कार्यो में असफल पाया गया। अर्थात जिस वायरस की स्ट्रेन के लिये इसे कर्नाटक की जलवायु में प्रतिरोधी पाया गया था वो स्ट्रेन उत्तर भारत में ज्यादा प्रभावित न होकर अन्य दूसरी स्ट्रेन से पौधा ग्रसित रहा और इस क्या औसत उत्पादन दर के आसपास भी नही पहुँच सका।
इसलिये ही ऐसा सुझाव दिया जाता है कि, ऐसे ही किसान भाई/बहन अन्य प्रदेशों में होते उत्पादन से प्रभावित होकर अपने फसल क्षेत्र को त्वरित फैसलों में सम्पूर्ण ही उस किस्म से न भरें जो उनके अपने क्षेत्र में अभी तक कहीं भी परीक्षित नही हुई हो।
किस्मों के चयन उनके स्वाद, रँग, आकार एवं आकृतियों के आधार पर भी करना दूसरा प्रमुख कारण है जो कि सीधे ही स्थानिक उपभोक्ताओं के ऊपर निर्भर करता है या किसी विशेष चयनित दूर के बाजार पर।
मिट्टी के प्रकार में उसकी जलधारण क्षमता, पीएच- जिससे अम्लीय और क्षारीय भूमि निर्धारण हो, उपलब्ध कार्बन, प्रकार- जलोढ़, काली, लाल, बलुई इत्यादि के आधार पर भी स्थान विशेष में अलग अलग फसल चयन प्रभावित करता है।
खेत की आसपास की अन्य कृषि भूमि से ऊँचाई, निचला स्तर भी जल भराव या अन्य कारकों के आधार पर उस तरह की परिस्थितियों में प्रतिरोधी फसलों के चयन पर प्रभाव रखता है।
इसी प्रकार लक्ष्य किये गए बाजार और उस जगह तक पहुंचने में लगा श्रम, समय और उत्पाद की क्वालिटी भी किसी फसल चयन में प्रमुख स्थान रखती है।
इन सभी कारकों से इतर, किसान की आर्थिक स्थिति, जोखिम लेने की क्षमता, नवीन फसल ग्राह्यता, उपलब्ध मानव श्रम एवं उपकरण तथा उपलब्ध सरकारी~गैर सरकारी/कम्पनी सामाजिक जिम्मेदारी जैसी सुविधा प्रमुख रूप से किसी भी फसल चयन में अपना प्रभाव रखती है और इस प्रकार क्षेत्र विशेष का फसल एकाधिकार प्रभावित हो सकता है।
डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ
सहायक प्राध्यापक- उद्यान विज्ञान विभाग,
रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, रायसेन, मध्य प्रदेश