पालि और थेरवाद बौद्ध धर्म की वर्तमान समय में प्रासंगिकता"विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया
पालि सोसायटी ऑफ इण्डिया एवं सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में त्रिपिटकाचार्य डाॅ. भिक्षु धर्मरक्षित का 44वाॅ पुण्यतिथि महाप्रयाण से महापरिनिब्बान दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित चार दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार "पालि और थेरवाद बौद्ध धर्म की वर्तमान समय में प्रासंगिकता" नामक विषय पर आज 23 मई, 2021 को सायं 5 बजे उद्घाटन-सत्र सम्पन्न हुआ।
उद्घाटन-सत्र की अध्यक्षता कर रहे नव नालन्दा महाविहार के पूर्व निदेशक प्रो. रवीन्द्र पन्थ ने भगवान् बुद्ध के शिक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पालि और थेरवाद बौद्ध धर्म आज के कोरोनाकाल में बहुत ही प्रासंगिक है तथा भगवान् बुद्ध द्वारा बतलाये गये ध्यान-साधन (विपश्यना) मानव जीवन में व्याप्त दु:खों तथा समस्याओं के निदान में सहायक है।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के श्रमण विद्या संकाय के अध्यक्ष एवं पालि सोसायटी ऑफ इण्डिया के महासचिव प्रो. रमेश प्रसाद ने अपने बीज वक्तव्य में वेबिनार की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए पालि सोसायटी ऑफ इण्डिया की पालि भाषा व साहित्य के विकास में की जाने वाली गतिविधियों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला।
मुख्य अतिथि प्रो. सी. उपेन्द्र राव (दिल्ली) ने कहा कि पालि भाषा और साहित्य का विकास वर्तमान जीवन में बहुत जरूरी है। मुख्य वक्ता प्रो. बिमलेन्द्र कुमार (वाराणसी) ने आधुनिक भारत में पालि भाषा की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा कि पालि वह जीवन्त भाषा है जो थेरवाद को सम्भाल कर रखा है। विशिष्ट अतिथि प्रो. महेश देवकर (पूणे) ने कहा कि भिक्षु धर्मरक्षित के ग्रन्थों का प्रकाशन सोसायटी द्वारा किया जाय। इस वेबिनार में पालि भाषा और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले 5 विद्वानों को तिपिटकाचरिय भिक्खु धम्मरक्खित पालि सम्मान से सम्मानित किया गया, जिसमें वर्ष 2019 का पालि सम्मान विपश्यना विशोधन विन्यास के निदेशक प्रो. अंगराज चौधरी को दिया गया। वर्ष 2020 का पालि सम्मान म्यान्मार बुद्ध विहार, कुशीनगर के विहाराधिपति अग्गमहापण्डित भदन्त ज्ञानेश्वर महाथेरो और नव नालन्दा महाविहार के पूर्व निदेशक प्रो. उमाशंकर व्यास को दिया गया।
वर्ष 2021 का पालि सम्मान नव नालन्दा महाविहार के पूर्व निदेशक प्रो. दीपक कुमार बरूआ और दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध विद्या विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. संघसेन सिंह को दिया गया। इन पाँच पुरस्कारों की उद्घोषणा प्रो. रमेश प्रसाद द्वारा की गई तथा इनका वाचन डाॅ. प्रफुल्ल गडपाल (लखनऊ) ने किया। पालि सम्मान से सम्मानित प्रो. अंगराज चौधरी ने कहा कि विपश्यना से राग और द्वेष को दूर किया जा सकता है। पालि साहित्य एक अनोखा साहित्य है, इसमें थेर तथा थेरियों के उद्गार है। प्रो. उमाशंकर व्यास ने कहा कि पालि भाषा मेघा को प्रकाशित करने वाली भाषा है।
डाॅ. ज्ञानादित्य शाक्य ने त्रिपिटकाचार्य डाॅ. भिक्षु धर्मरक्षित महास्थिवर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। भिक्षु सुमनानन्द ने आशीर्वाचन देते हुए कहा कि पालि भाषा के विकास हेतु सभी शिक्षण संस्थानों में पालि विभाग की स्थापना होना चाहिए।
उद्घाटन-सत्र की शुरुआत बुद्ध वन्दना के साथ की गई, जिसका संगायन भिक्षु ज्ञानालोक थेरो ने किया। सोसायटी के अध्यक्ष डाॅ. भिक्षु स्वरूपानन्द महाथेरो ने स्वागत भाषण दिया। डाॅ. भिक्षु नन्दरतन थेरो ने संचालन किया तथा सोसायटी के उपाध्यक्ष डाॅ. रमेश चन्द्र नेगी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
भिक्षु आलोक कुमार बौद्ध ने अपना तकनीकी सहयोगया दिया। इस कार्यक्रम में देश-विदेश के बौद्ध विद्वान्, बौद्ध भिक्षु, शिक्षक, शोधार्थी, बौद्ध उपासक तथा उपासिकाए सहित सैकङो प्रतिष्ठित लोग सम्मिलित हुए।
आज 12वें पालि दिवस समारोह के प्रथम-सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ केन्द्र के निदेशक प्रो. विजय कुमार जैन ने की। उन्होंने अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए पालि एवं थेरवाद बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता पर महत्वपूर्ण विचार रखें। प्रथम-सत्र में प्रो. रमेश प्रसाद ने बीज वक्तव्य दिया तथा इसमें उपस्थित विद्वानों का स्वागत डाॅ. भिक्षु स्वरूपानन्द महाथेरो ने किया।
ऑनलाइन वेबिनार को डाॅ. ललन कुमार झा (नालन्दा), डाॅ. सत्येन्द्र कुमार पाण्डेय (दिल्ली), डाॅ. रमेश रोहित (सांची) और डाॅ. विकास कुमार सिंह (दरभंगा) ने सम्बोधित किया। डाॅ. भिक्षु बुद्धदत्त थेरो (बैंगलोर) ने आशीर्वाचन दिया तथा डाॅ. भिक्षु धम्मपाल थेरो (संकिसा) ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस सत्र का संचालन भिक्षु ज्ञानालोक थेरो ने किया।
प्रथम- सत्र का आरम्भ भिक्षु आलोक कुमार बौद्ध ने बुद्ध वन्दना से की तथा उन्होंने इस सत्र में अपना तकनीकी सहयोग भी प्रदान किया।