चने की फसल में फली छेदक कीट पर रखे नजर


चने की फसल को फली छेदक कीट सर्वाधिक क्षति पहुंचाता है। किसान इसका प्रकोप उस समय समझ पाते हैं, जब सूड़ी  बड़ी होकर चना की फसल को 5 से 7 प्रतिशत तक क्षति पहुंचा चुकी होती है। 

उक्त् जानकारी देते हुए आचार्य  नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्व विधालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र सोहाँव बलिया  के अध्यक्ष प्रो.रवि प्रकाश मौर्य ने चना की खेती किये हुए किसानों को सलाह दिया है कि फली भेदक कीट के प्रबंधन  के लिये  पहले कीट की पहचान एवं क्षति के लक्षण  की जानकारी होना आवश्यक है। 

पहचान- यह समान्यतः चना फली भेदक के  नाम से जाना जाता है।  यह लगभग 181 प्रकार की फसलों एवं 48 प्रकार की खरपतवारों को खाता है।  प्रौढ़ पतंगा पीले बदामी रंग का होता है।  इस कीट की  छोटी सूडी़ पीली, नारंगी, गुलाबी, काली या स्लेटी रंग की  पीठ पर काली धारियां लिए हुए होती है। *

क्षति के लक्षण-  इस कीट की छोटी सूडी़ फसल की कोमल पत्तियों को खुरच खुरच कर खाती है। व बड़ी सूडी़ पत्तियों, कलियों, फूलों के साध- साथ फलियों मे गोलाकार छेद कर मुँह अन्दर घुसाकर दाने को खाती है। मार्च माह मे तापक्रम बढने से इस कीट का प्रकोप ज्यादातर होता है।

प्रबंधन कैसे-  फेरोमोन् जाल से चना फली छेदक के प्रकोप का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, जिससे समय से फसल को  क्षति से बचाया जा सकता है। इस जाल को डंडे से खेत में फसल से दो फीट की ऊंचाई पर बाधा  जाता  ,चना की फसल में इस जाल का प्रयोग 5 जाल प्रति हेक्टेयर की दर  30 -30 मीटर की दूरी पर लगा कर करना चाहिए व जाल में फंसे चना फली छेदक के नर पतंगे की नियमित निगरानी करनी चाहिए। जब  औसतन 4-5 नर पतंगे प्रति( गंधपास ) जाल  लगातार 2-3 रात्रि  तक दिखाई देने लगे तो नियंत्रण करना आवश्यक हो जाता है। इस कीट के नियंत्रण के लिये  जैविक कीटनाशी  एच एन.पी.वी.250 -300  एल.ई, को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिड़काव  सायं काल सूर्यास्त के समय करनी चाहिये।साथ मे आधा किग्रा. गुड़ भी मिला ले।  यदि यह जैविक कीटनाशी उपलव्ध न हो तभी रसायन कीटनाशकों का प्रयोग करे, इसके लिये  इण्डेक्सोकार्ब  14.5℅ एस.सी. 250 मिली या स्पाइनोसैड 45%  एस.सी.100  मिली  को 500 लीटर पानी मे घोल कर प्रति हैक्टेयर  की दर से छिड़काव करें। 

सावधानियां - रसायनों के छिड़काव के बाद 7-15 दिन बाद ही फलियों को खाने में प्रयोग करे। साबुन से कपड़ों की सफाई के साथ -साथ स्नान भी साबुन से करेंं। जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करे ,अतिआवश्यक हो तभी रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।

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