आइए मिलकर मनाएं ‘यह दिवाली अलग निराली’, बच्चों ने दिए दिल को छू जाने वाले सुझाव

अतुल पटैरिया, नई दिल्ली। यह दिवाली अलग और निराली कैसे मनाएं..., देशभर के हजारों स्कूली बच्चों ने लंग केयर फाउंडेशन की वेबसाइट यहदिवालीअलगनिराली.ओआरजी.इन पर एक से बढ़कर एक उपाय साझा किए हैं। इस वेबसाइट पर अपने वीडियो और पोस्टर अपलोड कर बच्चों ने जता दिया है कि पर्यावरण और स्वास्थ्य संरक्षण उनके लिए प्राथमिक और अति गंभीर विषय है। बच्चों ने जिस बालसुलभ तरीके से अपनी बात रखी है, उनका यह अंदाज दिल को छू जाता है। लेकिन 6 से 18 साल की उम्र के ये बच्चे जो कह रहे हैं, वह बड़ों को भी गंभीरता पूर्वक समझ लेना चाहिए।


चुनिंदा एक हजार संदेशों को सोशल मीडिया पर किया जारी


दिवाली पर पटाखे छुड़ाने की परंपरा को इन बच्चों ने अब गैरजरूरी करार दिया है। कह रहे हैं कि ऐसी खुशी किस काम की, जो जीवन पर भारी पड़े। लिहाजा, किसी ने गुब्बारे छोड़ कर खुशी मनाने का तरीका सुझाया है तो किसी ने पौधा रोप कर खुशी मनाने का। किसी ने जरूरतमंदों को उपहार बांटने का, तो किसी ने बुजुर्गों को हंसाने, मिठाई बांटने, खिलौने खरीदने- बांटने, आंगन में रंगोली सजाने का। ऐसे चुनिंदा एक हजार संदेशों को लंग केयर फाउंडेशन ने वेबसाइट और सोशल मीडिया पर जारी किया है। दिवाली के बाद इन बच्चों को पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।


भारत में 25 फीसद स्कूली बच्चे अस्थमा के शिकार


लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक और मैनेजिंग ट्रस्टी प्रोफेसर डॉ. अरविंद कुमार ने दैनिक जागरण से इस कैंपेन के निहित उद्देश्यों को साझा करते हुए कहा, लंग केयर फाउंडेशन दरअसल बच्चों के माध्यम से उन सभी कारकों के प्रति जागरूकता का विस्तार करने में जुटा है, जो न केवल पर्यावरण के लिए चुनौती हैं बल्कि फेफड़ा (लंग) संबधित रोगों के कारक हैं। भारत में 25 फीसद स्कूली बच्चे अस्थमा का शिकार हैं। ऐसे में हमने बच्चों को ही अपना दूत बनाया है ताकि समाज इस गंभीर विषय को समझ सकेऔर पर्यावरण व स्वास्थ्य संरक्षण की मुहिम का हिस्सा बन सके। 'यह दिवाली अलग निराली' कैंपेन हमने इसी उद्देश्य से लॉन्च किया। एक अक्टूबर से लेकर 25 तक देशभर के हजारों स्कूली बच्चों ने इसमें प्रतिभाग किया और वायु प्रदूषण को रोकने के अलावा प्लास्टिक पर लगाम लगाने के लिए रोचक सुझाव दिए।


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